नागा साधु क्यों करते हैं 17 श्रृंगार; मोह-माया छोड़ने के बाद भी नागाओं के लिए ये क्यों जरूरी? कुंभ के बाद क्यों नहीं दिखाई देते? VIDEO
Naga Sadhus 17 Shringar Items Interesting Facts MahaKumbh Prayagraj
Naga Sadhus Shringar: सांसारिक मोह-माया को त्यागकर विरक्त भाव से भगवान शिव में लीन रहने वाले नागा साधुओं के जीवन को लेकर लोग ज्यादा से ज्यादा जानना चाहते हैं। नागाओं का जीवन लोगों के बीच चर्चा का विषय रहता है। नागा साधुओं के रहस्य जानने के लिए लोग उत्सुक रहते हैं। वहीं, नागा साधुओं के बारे में कहा जाता है कि उन्हें क्रोध बहुत ज्यादा आता है। इतना क्रोध कि वह आप पर हमला भी कर सकते हैं। यही कारण है कि, लोग नागा साधुओं के समीप जाने से डरते भी हैं।
लेकिन क्या आप जानते हैं कि नागा साधु श्रृंगार भी करते हैं। वो भी 16 श्रृंगार नहीं बल्कि 17 श्रृंगार। जी हां, भले ही नागा साधुओं को मोह माया से विरक्त माना जाता है लेकिन फिर भी नागा साधु 17 श्रृंगार को महत्वपूर्ण मानते हैं। वह 17 तरह का श्रृंगार करने में विश्वास रखते हैं। पौराणिक मान्यता है कि नागा साधु के ये 17 श्रृंगार शिवभक्ति का प्रतीक हैं। इसलिए जिस तरह हिन्दू धर्म में सुहागिन महिलाएं 16 श्रृंगार करती हैं, ठीक उसी तरह से महाकुंभ में अमृत स्नान या अन्य मौकों पर नागा साधु 16 नहीं बल्कि 17 श्रृंगार करते हैं।
माना जाता है कि, नागा साधुओं का ये श्रृंगार शारीरिक सौन्दर्य के लिए नहीं बल्कि आध्यात्मिक शुद्धि के लिए होता है। इसमें शरीर के साथ-साथ मन का श्रृंगार भी किया जाता है। नागा साधु एक विशेष तरह की लंगोट पहनने के साथ भभूत, कड़े, कुंडल सहित 17 श्रृंगार धारण करते हैं। इन 17 श्रृंगारों का विशेष महत्व है। आइए, जानते हैं नागा साधुओं के सभी 17 श्रृंगार।
भस्म का श्रृंगार
नागा साधू सबसे पहले अपने शरीर पर भस्म लगाते हैं। जिस तरह भगवान शिव श्मशाम की भस्म शरीर पर मलते हैं। उसी तरह नागा साधु भी शरीर पर श्मशाम की राख यानी भस्म-भभूत मलते हैं। नागा साधु भस्म से श्रृंगार करके ये संकेत देते हैं कि जीवन बहुत क्षणिक है, ये कुछ ही समय के लिए होता है।
लंगोट का श्रृंगार
नागा साधु निर्वस्त्र रहते हैं। लेकिन नागा साधुओं के श्रृंगार में लंगोट भी शामिल है। नागा साधुओं की ललोट सामान्य ललोट से अलग होती है।
चंदन का श्रृंगार
भगवान शिव को चंदन का तिलक बेहद पसंद है। चन्दन शीतल करने और शांति का प्रतीक है। इसलिए नागा साधू अपने शरीर पर भस्म लगाने के बाद बाद हाथ, गले और माथे पर चन्दन का लेप लगाते हैं।
रुद्राक्ष की माला का श्रृंगार
रुद्राक्ष, साक्षात भगवान शिव हैं। इसलिए नागा साधु कई रुद्राक्ष की मालाएं पहनते हैं। वे गले के अलावा बाहों पर रुद्राक्ष की मालाएं पहनते हैं। जैसे भगवान शंकर पहनते हैं। इसके अलावा नागा साधु अपने सिर पर जटाओं में भी रुद्राक्ष की मालाएं लपटते हैं।
तिलक का श्रृंगार
नागा साधु तिलक का श्रृंगार भी करते हैं। वह हमेशा माथे पर तिलक धारण करते हैं, जो कि शिव भक्ति का प्रतीक माना जाता है।
काजल का श्रृंगार
माथे पर तिलक और गले में रुद्राक्ष की माला धारण करने के अलावा नागा साधु आंखों में काजल या सूरमा भी लगाते हैं। ये नागा साधु की आंखों का श्रृंगार होता है.
फूलों की माला का श्रृंगार
श्रृंगार में नागा साधु गले, सिर में जटाओं पर और कमर में फूलों की माला पहनते हैं। ये उनके श्रृंगार का एक हिस्सा है। फूलों के अलावा कई बार वह मुंडों की माला भी पहनते हैं।
हाथों में कड़े - नागा साधु हाथों में पीतल, तांबें, चांदी के अलावा लोहे का कड़ा पहनते हैं।
पैरों में कड़े का श्रृंगार
नागा साधुओं के जीवन के 17 श्रृंगारों में पैरों में कड़े पहनने का भी महत्व है। वह पांव में पीतल, चांदी या लोहे के कड़े पहनते हैं। कई बार इनमें घुघरूं भी लगे होते हैं।
शस्त्र का श्रृंगार
नागा साधुओं के जीवन के 17 श्रृंगारों में शस्त्र का श्रृंगार भी है। नागा साधु हमेशा अपने हाथ में त्रिशूल और चिमटा रखते हैं। चिमटे का प्रयोग वे कई कार्यों के लिए करते हैं। जरुरत पड़ने पर चिमटे का अस्त्र के रूप में प्रयोग भी करते हैं। इसके अलावा तलवार, गदा, फरसा भी उनका श्रृंगार होता है।
डमरू का श्रृंगार
भगवान शिव के हाथ में डमरू है और यह डमरू उन्हें बेहद प्रिय है। जिस तरह शिव जी हमेशा डमरू पास रखते हैं। उसी तरह नागा साधु भी डमरू को हमेशा अपने साथ रखते हैं। श्रृंगार में भगवान शिव की स्तुति करते समय नागा साधु डमरू बजाते हैं।
कमंडल का श्रृंगार
नागा साधु अपने हाथों में हमेशा कमंडल रखते हैं। इस कमंडल में गंगाजल और पानी होता है। यात्रा के दौरान इसी कमंडल से जल भी ग्रहण करते हैं। भगवान शिव की पूजा में वह कमंडल का उपयोग करते हैं।
जटाओं का श्रृंगार
नागा साधु गुथी हुई जटाओं को विशेष प्रकार से संवारते हैं। नागा साधु इन जटाओं को पूरी तरह से प्राकृतिक तरीके से रखते हैं
पंचकेश का श्रृंगार
पंचकेश यानि पांच बार घुमाकर जटाओं को सिर पर लपेटा जाता है। मतलब नागा साधु सामान्य तरीके से केश नहीं बांधते बल्कि बालों की लटों को 5 बार घुमा कर लपेटते हैं, इसे पंचतत्व की निशानी माना जाता है।
अंगूठियों का श्रृंगार
नागा साधुओं ने उँगलियों में अलग-अलग तरह की अंगूठियां पहनी होती हैं। हर एक अंगूठी किसी न किसी बात का प्रतीक होती है।
रोली लेप का श्रृंगार
नागा साधुओं में रोली का लेप भी लगाया जाता है। नागा साधु अपने माथे को खाली नहीं रखते हैं। वह माथे पर भभूत और चन्दन के अलावा रोली का लेप भी लगाते हैं।
कुंडल का श्रृंगार
नागा साधु कानों में चांदी या सोने के कुंडल धारण करते हैं। इन कुंडलों को सूर्य और चंद्रमा का प्रतीक माना जाता है। नागा साधुओं का यह पूरा श्रृंगार भगवान शिव को समर्पित होता है। ऐसा भी माना जाता है की नागा साधुओं का यह पूरा श्रृंगार नकारात्मक ऊर्जाओं के खिलाफ एक ढाल के रूप में काम करता है।
नागा का अर्थ क्या है?
नागा साधुओं को इसलिए नागा कहा जाता है क्योंकि नागा का अर्थ खाली होता है। इसका अर्थ है कि नागा साधु केवल भक्ति और अध्यात्म के ज्ञान के अलावा बाकी चीजों को शून्य मानते हैं। इसका एक अर्थ यह भी है कि इन चीजों के अलावा इनका जीवन खाली है, सभी मोह माया से परे हैं।
कुंभ के बाद क्यों नहीं दिखाई देते नागा साधु?
एक सवाल अक्सर उठता है कि, कुंभ के बाद नागा साधु क्यों नहीं दिखाई देते? आखिर नागाओं की फौज कहां चली जाती है? वह कहां अद्रश्य हो जाते हैं। बताया जाता है कि, नागा साधु कुंभ के बाद समाज से बहुत दूर पहाड़ों की कन्दराओं पर जाकर वास करते हैं। वहीं रहते हैं और तप करते हैं।
महाकुंभ अमृत स्नान में नागा साधुओं का हुजूम